बचपन
———
वो एक खिलखिलाती मुस्कुराहट देखी
आज चौराहे से गुज़रते हुए हमने ख़ामोश बचपन की नुमाइश देखी
वो बचपन जो भूख और बेगारी में कहीं खो गया
वो बचपन जो माँ बाप की आमदनी का जरिया बनकर रह गया
उस बचपन की खाली आँखें देखी
वो बचपन जिसे खुशनुमा होना था
वो बचपन जिसे किताबों की भीड़ में कहीं खोना था
उस बचपन को आज ट्रैफिक के बीच लोगों का मनोरंजन करते देखा
आज हमने उस बचपन का सब कुछ खोते हुए देखा
वो बचपन था अनजान अपने खोये हुए वजूद से
वो बचपन था अनजान चिलचिलाती धुप से
सिर्फ एक आकाश था उसका
हाथ में दिया गया एक सिक्का खास था उसका
उस बचपन का आलम देख हम स्तब्ध रह गए पल भर हमें कुछ न समझ आया और हम वहीँ ठहर गए
इससे पहले की हम कुछ सोच पाते
गाड़ियों के शोर ने हमे जगाया
एक पीछे वाले भाईसाहब ने हम पर बहुत चिल्लाया
उस बचपन की बेचारगी का तो हम कुछ नहीं कर पाए
लेकिन उस अँधेरे के आलम से हम खुद को नहीं निकाल पाए
हम निकल तो आये उस चौराहे से लेकिन शायद अपना एक पल हमेशा के लिए उसी मोड़ पर छोड़ आये
कब होगा ये बचपन आज़ाद
कब होगा इस देश का विकास
बस इसी जद्दोजहद में
जिंदगी के एक हिस्से को हम वहीं भूल आये ।।

Comments

Popular posts from this blog

Aaj Phir....