कहाँ है भगवान् ?? पूजते हैं जिसे सभी कहाँ है वो ? क्या सो रहा है वो ? हमे तो लगता है हमेशा सिर्फ सोता है वो दुनिया की काया पलटती जा रही है भूख बीमारी चोरी बढ़ती जा रही है बलात्कार जिस्म फरोशी का व्यापार है अपनी चरम सीमा पर छोटी नन्ही जानों को ख़रीदा बेचा जाता है ये पथरदिल पुरुष कैसे कर पाता है वासना का शिकार हमे आज इस दुनिया में हर आदमी नज़र आता है और भगवान अपनी आँखों से यह सब देखता जाता है कल जिस कृष्णा ने बचाई थी द्रौपदी की लाज है कहाँ वो आज ?? आज लाखों द्रौपदियों को वो बेसहारा छोड़ कहाँ अपनी बंसी बजाता है रोज यह व्यापार और अत्याचार बढ़ता जा रहा है एक नारी के चरित्र को यूँ कुछ कदमो तले कुचला जा रहा है भगवान सो रहा है इंसान जुर्म कर रहा है अब हमे खुद ही कुछ करना होगा अपने व्यक्तित्व को खुद ही बचाना होगा यूँ खेलने ना दो किसी को अपने जज़्बातों और हालातो से छेड दो तुम युद्ध कर दो क़त्ले आम आ जाओ काली के अवतार में ना रहो अबला नारी ना हो तुम बेचारी सशक्त स्वरुप है तुम्हारा करो तुम नर संहार ले लो जिंदगी की बागडोर अपने हाथ में करे कोई
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